1.क्या शिक्षा व्यक्ति का गौरव है? का परिचय (Introduction to Is Eduation Pride of Man?)-
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Is Eduation Pride of Man? |
क्या शिक्षा व्यक्ति का गौरव है? (Is Eduation Pride of Man?), इसके बारे में इस आर्टिकल में बताया गया है।
(1.)मनुष्य का मूल्यांकन विरासत में मिला हुआ धन, संपत्ति नहीं है और न ही सुंदरता है।मनुष्य की योग्यता व व्यक्तित्व शिक्षा, विद्या सद्बुद्धि, सद्ज्ञान,चरित्र और विवेक के आधार पर परखा जाता है।संसार में धनवान के बजाय शिक्षित व्यक्ति को ही वास्तविक रूप में धनी माना जाना चाहिए।
(2.)शिक्षा युवाओं का सहारा, धनवान का यश और प्रौढ़ व्यक्ति के सुख का साधन होता है।शिक्षा के आधार पर व्यक्ति विचारशील, एकाग्रचित्त और परिश्रमी बनता है। शिक्षा समृद्धि में आभूषण,कठिनाई में सहारा और प्रत्येक समय हमारे मनोरंजन का साधन है।इस प्रकार हमें शिक्षा और विद्या द्वारा अंतर्बोध होता है अर्थात् परमात्मा की अनुभूति होती है।
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(3.)युवाओं तथा प्रौढ़ व्यक्तियों का विद्या ही सच्ची मित्र और अविद्या से बढ़कर कोई शत्रु नहीं है।विद्या तथा शिक्षा से मनुष्य सम्मान प्राप्त करता है। अविद्या तथा अज्ञान के कारण ही असफलता प्राप्त होती है।मनुष्य धन-संपत्ति और जमीन जायदाद के कारण नहीं बल्कि विशेष ज्ञान,शिक्षा और विशेष अध्ययन के कारण ही आगे बढ़ता है।
(4.)शिक्षा और विद्या का इतना अधिक महत्त्व होने के बावजूद शिक्षा और विद्या अर्जित करना और कराना दोनों ही कार्य कठिन है।कठिन कार्य इसलिए है कि शिक्षा और विद्या का अध्यापन कराने की योग्यता वही मनुष्य रखता है जो अपने चरित्र को उज्जवल व पवित्र रखता है अर्थात् आचरणयुक्त मनुष्य ही पात्रता रखता है और ऐसे मनुष्य बहुत कम विद्यमान है।ऐसा मनुष्य अपने विद्यार्थियों को तत्व-विद्या अर्थात् ऐसी विद्या जो मनुष्य को श्रेष्ठ बनाती है और उच्च स्तर पर पहुंचाती है,का ज्ञान कराने की क्षमता रखता है।
2.क्या शिक्षा मनुष्य का गौरव है?(Is Eduation Pride of Man?),शिक्षा व्यक्ति का आभूषण (Education Jewelry of Man)-
(5.)आधुनिक शिक्षा में ऐसा सामर्थ्य नहीं है जो विद्यार्थियों में चरित्र निर्माण ,कर्मठता, उत्साह,संयम और सात्त्विकता को जागृत कर सके क्योंकि वर्तमान समय में ऐसे अध्यापकों का अभाव है जिनमें उपर्युक्त गुण विद्यमान हों।जब अध्यापकों में ही वास्तविक शिक्षा व विद्या का अभाव है तो विद्यार्थियों के उद्धार के लिए जिस शिक्षा की आवश्यकता है उसका बीजारोपण कैसे सम्भव है?
(6.) आधुनिक शिक्षा में ऐसे समर्पित अध्यापकों का अभाव तो है ही साथ ही वर्तमान शिक्षा से जो विद्यार्थी डिग्री लेकर निकलते हैं उनमें से अधिकांश विद्यार्थियों में छल-कपट, चोरी, बेईमानी, दुश्चरित्रता, फैशनपरस्ती, विलासिता, अहंकार ,द्वेष,धूर्तता पाई जाती है।वास्तविक रूप में ऐसी विद्या या शिक्षा न होकर अशिक्षा ही कही जा सकती है। सच्चे अर्थों में आज शिक्षा और विद्या का अभाव ही है जो विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता ,शराब, सिगरेट ,मारपीट, लूट-खसोट, हड़ताल करना, परीक्षा में नकल करना जैसे दुर्व्यसनों में फंसाती है।
(7.)जो विद्या (ज्ञान) मनुष्य को सही दिशा, विकास, उन्नति और जीवन की सच्चाईयों का दिग्दर्शन कराती है,अपनी अंतरात्मा का बोध कराती है उसे भौतिक तथा आध्यात्मिक विद्या कहते हैं।यदि मनुष्य का विवेक जागृत ना हो तो ऐसी विद्या पतन का कारण बन जाती है।गुण, कर्म और स्वभाव में सात्विकता नहीं आती हो तो ऐसी शिक्षा मनुष्य को पशुता के बराबर लाकर खड़ा कर देती है।इस प्रकार अध्यात्म विद्या जीवन के लिए परम उपयोगी है।
(8.)अध्यात्म विद्या से मनुष्य स्वयं का मित्र तो बनता है, आजीविका के योग्य होता है तथा उसका जीवन आनंद व सुख से व्यतीत होता है। परंतु अध्यात्म विद्या को सीखने के लिए अर्थात् जीने के लिए सच्ची लगन,उत्साह व जिज्ञासा की आवश्यकता है।सच्चे अर्थों में जब हमें ज्ञान की प्यास होने लगे तभी समझना चाहिए कि हम सही दिशा में बढ़ रहे हैं।जो व्यक्ति सांसारिक कर्तव्यों का निर्वाह करने की शिक्षा व अध्यात्म-विद्या अर्जित कर लेता है तो वही मनुष्य का वास्तविक आभूषण है।
इस प्रकार उपर्युक्त विवरण में हमने क्या शिक्षा व्यक्ति का गौरव है? (Is Eduation Pride of Man?) को जानने का प्रयास किया है।
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